Gopal Gupta

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मधुशाला - पाट-3

भीग रहे शैल तुंग सब,
भीग रही तरु की डाली,,

भीगे पल्लव पुष्प लताएँ,
भीग वन है वन है वनमाली,,

धनक उठे सोंधि सोंधि सी,
महक उठे हर इक कण कण,,

तिर्प्त सदा वसुधा को करती,
करती जीवो का पोषण,,

रिमझीम रिमझीम बरश रही हैं,
अम्बर से जीवन हाला,,


लिये सुराई है मेघों की, 
ऋतु बन कर साकी बाला,,

महक रहे हैं वन उपवन सब,
बहक रहा मन मतवाला,,

बारिश की रिमझिम बूँदों मे,
बरस रही जीवन हाला,,

सकल जगत ये पीने वाला,
परा प्रकृति की मधुशाला,,

Gopal Gupta" Gopal"

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